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17 Feb 2025 · 1 min read

प्यास की आश

गंगा मैया प्यास बुझा दे,
अंतिम आश तुम्हारी है।
कपट धार में झुलसी काया,
निर्मल धार तुम्हारी है।।

प्यास बुझाने मैं धरती पर,
आवारा सा फिरता हूं।
मदहोशी सा आलम मेरा,
बहका- बहका तिरता हूं।।

मृग तृष्णा की प्यास निराली,
मैं राही अलबेला हूं।
भटकन जीवन भर न छूटी,
हर दिन दुर्दिन झेला हूं।।

सौरभ युक्त धरा गाती है,
महकी सी फुलवारी है।
प्यास मिटी न मेरी माई!
अंतिम आश तुम्हारी है।।

सुख दुख को मैं छककर पीता,
देखो मेरी मजबूरी है।
चला जगत को छोड़ अकेला,
केवल ‘दो बूंद’ जरूरी है।।

Language: Hindi
44 Views
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