क्या जिंदगी थी
कुछ जमीं, कुछ आसमां
कुछ मुस्कुराहटें और कुछ सामां
कुछेक सिक्के, कुछ घूंट आब…
क्या जिंदगी थी जनाब…..
खुशियों की….दस्तक की दरकार
नासमझ से कुछेक यार
बेर पर लदे फल..
उनपर फेंकते कत्तल
निशाना सर्वथा चूक
कोशिशें बेहिसाब
क्या जिंदगी थी जनाब……
श्यामपट से दुद्धि निहारे
जीभ मसलपट्टी पुकारे
आँखे परिक्रमित सी रहतीं
छन से कई भाषाएं कहतीं
सहसा घमक्का परोसते मास्साब
क्या जिंदगी थी जनाब……
आम के टीकोरे न बचते
भीग जाते बल खरचते
नाक में भीनी सी खुशबू
फूल तोड़ने की आदत सी आरजू
जेब में गेंदा, गठुअन औ गुलाब
क्या जिंदगी थी जनाब……
-सिद्धार्थ गोरखपुरी