*मनः संवाद—-*

मनः संवाद—-
17/02/2025
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
दुनिया में बिकते देखे, लोगों के ईमान को, खुला नित्य बाजार।
अलग-अलग सबकी कीमत, मूल्य सभी के तय यहाँ, बिकने को लाचार।।
कोई सस्ते में बिकता, कोई महँगा बिक रहा, यही यहाँ व्यापार।
खरीदकर महँगी बेचे, बनते हैं उस्ताद ये, ऐसे इज्जतदार।।
कोई है ज्ञान बेचता, कोई शरीर बेचता , बेच रहे हैं धर्म।
होता धोखाधड़ी कहीं, खुलेआम भी हो रहा, बेच रहे सब शर्म।।
कोई बेचता देश को, सुघर स्वप्न की आस में, बिके जवानी गर्म।
राजनीति धंधा करती, खुश है वेश्यावृत्ति में, करते सभी कुकर्म।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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