बनते बनते जब बिगड़, गई हमारी बात।

बनते बनते जब बिगड़, गई हमारी बात।
दिल ही यह कहने लगा, बहुत हुई अब रात।।
बहुत हुई अब रात, किसे किस तरह मनाएं
रखते अपनी आन,भला क्यों शीश झुकाएं
कहे सूर्य कविराय, जुड़े सब दिल से रिश्ते
टूट रहे हैं कांच, आइना बनते बनते।।
सूर्यकांत