सुमुखि सवैया
सुमुखि सवैया /मानिनी —
सृजन शब्द- महान
121-121-121-12, 1-121-121-121-12
महान कहा कर नाज किया,अपनी महिमा निज गान करे।
जबान चला जन जीत गए,चुपचाप रहे हम पीर भरे।।
निशान पड़े दिल पे कितने, तन घाव लगे सब आज हरे।
सदा कड़वे मुख बोल कहे,कितना अब मानस धीर धरे।।
तराश लिया खुद को इतना, अब राह नहीं भटके मन रे।
महान वही जन आज बने, सत आग तपे जब जीवन रे।।
जला सत दीप प्रकाश किया, तब नाश हुआ तम का घन रे।
प्रकाशित अंतस आज हुआ,मन ज्ञान रहा अब आ छन रे।।
प्रदीप जले जब भीतर के,सब दीख रहा अब साफ मुझे।
छला करते नित बात बना, पहचान गए हम आज तुझे।।
सवाल बना अब जीवन का,
चल साँस रही मन आस बुझे।
प्रभात करूँ नव जीवन की, अब रोशन रोशन राह सुझे।।
सीमा शर्मा