अतृप्त मन,त्रस्त दिल,था सुकून की तलाश में,

अतृप्त मन,त्रस्त दिल,था सुकून की तलाश में,
आडंबरों भरी दुनिया में,ढूंढ रहा विश्वास को,
मन के ही कोने में छिपी थी कहीं,
वो लौ…जो थी आस-विश्वास की,
देखकर बोली धधक कर,न शांत करना मुझे तू,
प्रगति पथ पर चला चल…
तुझे तेरी मंजिल की ओर,मेरी तपिश ही ले जाएगी!