*हवा कैसी चली तन·मन हुई हल·चल*

हवा कैसी चली तन·मन हुई हल·चल
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हवा कैसी,चली तन·मन,हुई हल·चल,
रुकी सांसे हुई मुश्किल,बढ़ी हल·चल।
नहीं शिकवा·शिकायत भी,रही उन पर,
अभी भी यूँ,मचलता मन,वही हल·चल।
अकेला ही चला जाता रहा पथ पर,
मिली मंजिल नहीं हर दर,रही हल·चल।
नहीं आई नयन नींदें , रहे खोये,
सुला दो नींद गहरी सी,यही हल·चल।
कहे कोई , सुने कोई , सहे कोई,
रखें कब तक,हदें ढीली,बनी हल·चल।
सुनो दिल की,सदा तुम यार मनसीरत,
चले आओ , खुली बाहें,रुकी हल·चल।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)