वेदना

डॉ अरूण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक अरूण अतृप्त
दर्द बिखरा है पड़ा , चारों तरफ अब याम आठों ।
कौन किसके साथ होगा ये बताना चाहिए।
वेदना से जल रहे हैं जगत के सभी आदमी।
कौन मलहम इनको देगा ये बताना चाहिए।
आशिक़ी ने सबको मारा आशिक़ी फ़िर भी न मरी।
प्यार की आराधना का अधिकार सबको चाहिए।
हम मिटे मर – मर मिटे तीरगी मिट पाई कहां ।
तीरगी के इस विषय का प्रतिकार होना चाहिए।
तुम धनी हो जीतते आए सदा से हर बाज़ी यहां ।
यार मेरे खयाल से आप का इस बात पर सत्कार होना चाहिए।
ओ अरूण मुझको दिखा अब रास्ता कोई प्यार का।
युद्ध ये कब तक चलेगा, अब इसका अन्त होना चाहिए।
जग है माया, झूठी काया इसको चमकाना मिथक।
इस मिथक को समर्पित इस व्यवहार का भ्रम भी मिटाना चाहिए।
दर्द बिखरा है पड़ा , चारों तरफ अब याम आठों ।
कौन किसके साथ होगा ये बताना चाहिए।
वेदना से जल रहे हैं जगत के सभी आदमी।
कौन मलहम इनको देगा ये बताना चाहिए।
आशिक़ी ने सबको मारा आशिक़ी फ़िर भी न मरी।
प्यार की आराधना का अधिकार सबको चाहिए।