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15 Feb 2025 · 1 min read

मुक्तक

मुक्तक

1

मन को गंगा मानकर, उसमें करना स्नान।
अपगा गंदा कर दिया, भारत के शैतान।।1

पूजा का फल सोचकर, जाते हैं सब धाम।
गन्दी चीजें डालकर, करते काम तमाम।।2

उसमें कचरा डालना, समझे अपना धर्म ।
रे पापी यह क्या किया, तू तो किया कुकर्म।।3

2

जलन दूसरों से रखे, जिसका निम्न विचार।
दूर रहो उस दुष्ट से, रहो सब होशियार।।1

बदलो अपनी सोच को, कुंठित मानस त्याग।
शमित करो अति शीघ्र ही, द्वेष-कुढ़न की आग।।2

संकुचित सोच त्यागकर, उर में करो विचार।
अच्छे अनेक लोग हैं, भरे पड़े संसार।।3
नरेन्द्र सिंह

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