असलियत को छुपाने वाले अक़्सर मुखोटा लगाते है
यात्राओं से अर्जित अनुभव ही एक लेखक की कलम की शब्द शक्ति , व
मुझे जीना सीखा दो ज़रा ( ग़ज़ल)
जिंदगी की तन्हाइयों मे उदास हो रहा था(हास्य कविता)
देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत'
जिसनें जैसा चाहा वैसा अफसाना बना दिया
पहले की औरतों के भी ख़्वाब कई सजते थे,
लहरों ने टूटी कश्ती को कमतर समझ लिया