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14 Feb 2025 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . प्रेम दिवस

दोहा पंचक. . . . प्रेम दिवस

संस्कारों को लीलते, पश्चिम के त्यौहार ।
भोगवाद अब आज की, पीढ़ी का शृंगार ।।

प्यार दिवस का अर्थ अब, केवल है अभिसार ।
नवयुग की स्वच्छंदता, करती मलिन विचार ।।

नैनों को अच्छे लगें, नैनों के संवाद ।
नैनों का होता बड़ा , बेकाबू उन्माद ।।

प्रेम प्रदर्शन का बड़ा, छाया है उन्माद ।
इस ज्वर का उतरे नहीं, मन से कभी प्रमाद ।

कैसा है यह प्रेम का, अलबेला त्यौहार ।
मर्यादा को लीलते, खुलेआम अभिसार ।

सुशील सरना / 14225

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