दोहा पंचक. . . . प्रेम दिवस
दोहा पंचक. . . . प्रेम दिवस
संस्कारों को लीलते, पश्चिम के त्यौहार ।
भोगवाद अब आज की, पीढ़ी का शृंगार ।।
प्यार दिवस का अर्थ अब, केवल है अभिसार ।
नवयुग की स्वच्छंदता, करती मलिन विचार ।।
नैनों को अच्छे लगें, नैनों के संवाद ।
नैनों का होता बड़ा , बेकाबू उन्माद ।।
प्रेम प्रदर्शन का बड़ा, छाया है उन्माद ।
इस ज्वर का उतरे नहीं, मन से कभी प्रमाद ।
कैसा है यह प्रेम का, अलबेला त्यौहार ।
मर्यादा को लीलते, खुलेआम अभिसार ।
सुशील सरना / 14225