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13 Feb 2025 · 4 min read

#Secial_story

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■ गुलाब से जुलाव तक : पागलपन का पखवाड़ा
★ चोरी-चोरी चुपके-चुपके हुई तैयारियां
★ बेताब : इधर “बाज़ीगर” उधर “सिमरनें”
【प्रणय प्रभात】
तरुण प्रौढ़ों और अधेड़ युवाओं सहित नौसिखियों के दिल की दहलीज़ पर दस्तक देने के बाद निर्णायक मोड़ पर आ पहुंचा है, एक पखवाड़े के पश्चिमी पर्व का क्लाइमेक्स। जो बीते ढाई दशक में सारे पर्व-त्यौहारों को पीछे छोड़ अपसंस्कृति और अश्लीलता के महापर्व का ख़िताब हासिल कर चुका है। एक पखवाड़े के पागलपन के प्रतीक इस पर्व का आग़ाज़ बीती 07 फरवरी को हुआ था, जो आगामी 21 तारीख़ को पिंड छोड़ेगा। आशनाई के आमंत्रण गुलाब दिवस से शुरू हो कर बेवफ़ाई के जुलाब यानि सम्बन्ध विच्छेद (ब्रेकअप) दिवस तक चलने वाले इस पथभ्रष्टक पर्व की आमद को लेकर दो मोर्चो पर तैयारियों का दौर ज़ोर-शोर से शुरू होकर मुख्यय दिवस के लिए पूर्णता तक आ पहुंचा है।
एक तरफ आशिक़ी के झाड़ लोकतांत्रिक सरकार की तरह उदार हो कर घाटे का बज़ट तैयार कर अमल में लाने का आगाज़ कर चुके हैं। वहीं दूसरी ओर धर्म-संस्कृति के नाम पर हफ़्ते दो हफ़्ते के ठेकेदार हुड़दंगी विपक्ष की भूमिका अदा कर अदावत निकालने को मरे जा रहे हैं। जिन्हें अपने घर की सुलगती चिंगारी से ज़्यादा चिंता दूसरे के घर के अंगारों की है। मतलब कल पर्व के केंद्र दिवस पर एक कोने में “चोरी-चोरी चुपके-चुपके” की शूटिंग चलेगी, वहीं दूसरे कोने में “जिस देश मे गंगा रहता है” का ड्रामा होगा।
नज़ारे बिल्कुल सत्ता के सदन या एमसीडी जैसे होंगे। अख़बार और टीव्ही. वालों को कल एक बार फिर मुफ़्त का मसाला मिलेगा। जेबी संगठनों के सूरमाओं को जलवा पेलने का मौक़ा और त्यौहारी मस्ती के दीवानों को “बाबा जी का ठुल्लू” जो हर “हुड़कचुल्लू” का नसीब है।
महापर्व का पहला चरण “आठ का ठाठ” टाइप रहा। आठ दिन के पहले दिन 07 फरवरी को “गुलफ़ाम” गुलाब थमा कर उंगली थामने की प्रैक्टिस करते दिखे। ताकि उंगली के बाद पोंचे तक पहुंचने की राह आसान हो सके। अगले दिन 08 फरवरी को रोज़ थमाने का पर्पज़ प्रपोज़ यानि “इज़हारे-इश्क़” के तौर पर सामने आया। तीसरे दिन 09 फरवरी को नक़ली प्यार की पींग में हींग का तड़का लगाने का काम “चॉकलेट” ने किया। चौथे दिन 10 फरवरी को मंशा के रथ को विदेशी भालू उर्फ़ पांडा (टेडी-बियर) आगे बढ़ाता दिखा। जिसका साइज़ चॉकलेट की तरह देने वाले की हैसियत से अधिक लेने वाले की औक़ात पर निर्भर रहा।
पांचवें दिन 11 फरवरी को प्रॉमिस के नाम पर मिस के सामने क़सम खाई गई। जो हंड्रेड परसेंट झूठी मतलब “टांय टांय फिस” टाइप था। जिनका मामला जम गया, उनके लिए अगले दिन मतलब 12 फ़रवरी को “किस” के जरिये किस्मत का दरवाज़ा खुल गया। बाक़ी काठ के उल्लू बने किस्मत को कोसते रहे। बिल्कुल “जुम्मा चुम्मा दे दे” वाली स्टाइल में। चुम्बन दिवस के इस “चुम्बकत्व” का प्रभाव अगले दिन यानि आज 13 फ़रवरी को “चाँद” को “बाहु” में जकड़न की “राहु” जैसी सोच को बल प्रदान करने वाला रहा।
सात दिन की इस खर्चीली कसरत की कसर कल आठवें दिन 14 फ़रवरी को कथित संत वेलेंटाइन की रूह को ठंडक देने का काम करेगी। बशर्ते “दोनों तरफ हो आग बराबर लगी हुई।” जो इस त्यौहार का मूल उद्देश्य है। वो भी बिना गड़बड़, पूरी होशियारी के साथ। वरना हाथ पीले हों न हों, मुंह काला होने की फुल गारंटी तो है ही। ध्यान रहे कि लिब्रेशन के नाम पर 14 फरवरी के सेलिब्रेशन के ठीक 9 महीने बाद 14 नवम्बर को “बाल (बच्चा) दिवस” कहीं आए न आए, हमारे देश मे ज़रूर आता है। वो भी बिन बुलाए मेहमान की तरह।
यूं तो 90 फ़ीसदी नौटंकी पहले दौर में पूरी होने का विधान है। बावजूद इसके कुछ दीवाने अगले दौर से भी गुज़रने को तैयार रहते हैं ताकि अमर्यादा और अनैतिकता के ललित नहीं चलित और फलित निबंध का उपसंहार हो। पहले दौर में मनचाहा पूरा होते ही दूसरे दौर का अंदाज़ पाश्चात्य सभ्यता के अनुसार बदल जाता है। निर्णायक दौर की शुरुआत पहले दिन झापड़ (स्लैब) से होती है। दूसरे दिन मामला लात (किक) पर पहुंच जाता है। रिटर्न गिफ़्ट के तौर पर तमाचा और लात झेल जाने वाले को अगले दिन परफ्यूम दे कर फ़्लर्ट (धोखा) करने का मौक़ा नसीब होता है। जिसे मुराद पूरी कर लेने के बाद अगले दिन कंफेशन यानि गुनाह क़ुबूल करने की मोहलत मुहैया हो जाती है। इसके बाद बीते दिनों की याद और बेशर्म मुहब्बत ज़िंदाबाद। अंतिम दिन ब्रेकअप के साथ टेम्परेरी इश्क़ का पैकअप और जुनून ख़त्म। यह हाल है पश्चिम के प्यार का। मतलब प्यार ने ही लूट लिया घर यार का। अब मर्ज़ी आपकी। लुटो या लूटो। छोड़ो या छूटो। या फिर लपेटे में आ कर कुट-पिट जाओ तो घर बैठ कर छाती कूटो। वो भी जेब या नाक कटाने के बाद। अगले बरस तक के लिए…।
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【संपादक】
न्यूज़ & व्यूज़
(मध्यप्रदेश)

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