प्रेम अवतरण
हे निर्मोही !
रे बिछोई !
प्रेम मोल न जाना ।
सुन राधिके
प्रेम अवतरण
अमूल्य होता है ।
तूने न यह जाना।
रे मोहना!
रे निष्ठुर !
प्रीत तूने लगाई ।
मैं अज्ञान बाला
प्रेम बेल तूने बोई।
रे वृंदा सी पावन
अवतरित हुआ प्रेम
बीज मन बोया
जलन, ढाह में तू खोई ।
वंशी तेरी ,चैन लूटे ,
पग घुंघरू छनक जाते ।
नाम पुकारे तेरी मुरली
पाँव रुक कहाँ पाते।
शेष है अभी जानना
प्रेम की परिभाषा
ईर्ष्या से कब मिलता
खुद की अग्नि में जल जाते।
सिखाई रीत -प्रीत की तुमने
अब क्यूँ दूरी बनाई है?
तू क्या समझे नंदन
प्रेम लता मुर्झाई रे ।
जल बिन शुष्क होती धरणी
प्रीत बिन मनवा सूखा ।
बनाया ये रिश्ता तूने
खुद ही क्यूँ टूटा ।
वेदना सहचरी प्रीत की
छलबल का क्या काम ?
मन से मन की डोर बँधी
फिर बीच क्यों दीवार ?
बंधन प्रीत का गीत है
विरह श्वाँस संगीत
घट घट में प्राण बन
गूँजता प्रेम गीत है।
मिहिरा