*ज़िंदगी की किताब*

एक किताब ही तो है ये ज़िंदगी
जिसका हर दिन एक नया पन्ना है
कोई पढ़ ले मेरी इस किताब को
यहां हर किसी की यही तमन्ना है।
लेकिन है नहीं समय किसी के पास
हर कोई अपनी किताब लिखने में व्यस्त हो जाता है
सिर्फ़ एक दिन आ जाते हैं सब
जिस दिन आख़िरी पृष्ठ पूरा हो जाता है।
काश पहले भी आ जाए कोई
ये किताब और खूबसूरत हो जाएगी
बस हाल ही पूछ ले मुझसे मेरा
इस किताब में एक सुखद अनुभूति जुड़ जाएगी।
कहना आसान है बुरा किसी को
वक्त चाहिए पहचानने को किसी को
है नहीं यही वक्त पास किसी के
फिर भी बिना जाने कह देते हैं हम बुरा किसी को।
देख लो खिलते कमल को कीचड़ में
छोड़ दो चंदन में लिपटे सांपों को देखना
अच्छी बातों को देखें हम दूसरों में भी
फूल ही फूल होंगे हमारे चमन में देखना।
कभी हंसी है, है कभी आंसू यहां
हर किसी की अपनी अलग कहानी है
जिंदगी की जंग लड़ो, शांति के संग
लिखते रहो नए फ़लसफ़े जब तक सांसों में रवानी है
जो समझे इसे, वही सफल है
हर ख़ुशी और ग़म के हिसाब की कहानी है
कहीं रोशनी लिखी है कहीं अंधेरा भी है,
दुनिया में बिताए हर पल की निशानी है।
यही दस्तूर चला आ रहा है ज़माने का
यहां कहानी पूरी होने पर ही पढ़ी जाती है
इतनी व्यस्तता रहती है या दिखाते हैं हम
क्यों जाने के बाद ही याद अपनों की आती है।
एक किताब ही तो है ये ज़िंदगी,
इसमें दिखावा नहीं, सच बताना है
कोई पढ़े न पढ़े इसे, क्या फ़र्क़ पड़ता है
इसका हर शब्द ख़ास बनाना है।