माली की अभिलाषा

~माली की अभिलाषा ~
कुछ पुष्प धरा पर आकर के ,
अपना जौहर दिखलाते हैं।
कुछ हो जाते उद्देश्य-हीन,
असमय में ही मुरझाते हैं।
कुछ ना चढ़ पाते देव-शीश,
ना ही माला बन पाते हैं।
जिनको न जड़ का ध्यान रहा,
बिना मौसम सूख जाते है।
माली उनसे पछताता है,
वो खुद से ही पछताते हैं।
जो त्यागे राह सुकर्मों का,
वे प्यासे ही रह जाते हैं।
“प्यासा”