दोहा दशम – ….. उल्फत
दोहा दशम – ….. उल्फत
अश्कों से जब धो लिए, हमने दिल के दाग ।
तारीकी में जल उठे, बुझते हुए चिराग ।।
ख्वाब अधूरे कह गए, उल्फत के सब राज ।
अनसुनी वो कर गए, इस दिल की आवाज ।।
आँसू, आहें, हिचकियाँ, उल्फत के ईनाम ।
नींदों से ली दुश्मनी, और हुए बदनाम ।।
माना उनकी बात का, दिल को नहीं यकीन ।
आयें अगर न ख्वाब है, उल्फत की तौहीन ।।
यादों से हों यारियाँ , तनहाई से प्यार ।
उल्फत का अंजाम बस , इतना सा है यार ।।
मिला इश्क को हुस्न से, अलबेला उपहार ।
चश्मे साहिल हो गया, अश्कों से गुलजार ।।
तनहा – तनहा दिल जला, तनहा जले चिराग ।
तनहाई के दौर में, छलके दिल के दाग ।।
बाहुबंध में ख्वाब का, हुआ अजब अहसास ।
और करीबी से बढ़ी, प्यासी- प्यासी प्यास ।।
यादों के हैं जलजले, ख्वाबों के दीवान ।
हासिल उल्फत में हुए, अश्कों के तूफान ।।
उल्फत की रुख़सार पर, अश्क लिखें तहरीर ।
दर्द भरी तन्हाइयाँ, इसकी है तासीर ।।
सुशील सरना / 9-2-25