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9 Feb 2025 · 1 min read

दोहा दशम – ….. उल्फत

दोहा दशम – ….. उल्फत

अश्कों से जब धो लिए, हमने दिल के दाग ।
तारीकी में जल उठे, बुझते हुए चिराग ।।

ख्वाब अधूरे कह गए, उल्फत के सब राज ।
अनसुनी वो कर गए, इस दिल की आवाज ।।

आँसू, आहें, हिचकियाँ, उल्फत के ईनाम ।
नींदों से ली दुश्मनी, और हुए बदनाम ।।

माना उनकी बात का, दिल को नहीं यकीन ।
आयें अगर न ख्वाब है, उल्फत की तौहीन ।।

यादों से हों यारियाँ , तनहाई से प्यार ।
उल्फत का अंजाम बस , इतना सा है यार ।।

मिला इश्क को हुस्न से, अलबेला उपहार ।
चश्मे साहिल हो गया, अश्कों से गुलजार ।।

तनहा – तनहा दिल जला, तनहा जले चिराग ।
तनहाई के दौर में, छलके दिल के दाग ।।

बाहुबंध में ख्वाब का, हुआ अजब अहसास ।
और करीबी से बढ़ी, प्यासी- प्यासी प्यास ।।

यादों के हैं जलजले, ख्वाबों के दीवान ।
हासिल उल्फत में हुए, अश्कों के तूफान ।।

उल्फत की रुख़सार पर, अश्क लिखें तहरीर ।
दर्द भरी तन्हाइयाँ, इसकी है तासीर ।।

सुशील सरना / 9-2-25

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