भाग्य
यदि मार्ग पूर्ण कांटों से भरा हो ,
पग पग जीवन हार गया हो।
मित्र बन्धु सब छल कर जाये ,
फिर चंचल मन दौड़ लगाये।
कहां को जाऊं किससे कहूं अब ,
अपनी व्यथा को कैसे सहूं अब ।
तब झंकृत होकर हृदय से निकले ,
मेरा भाग्य यही , मेरा भाग्य यही , मेरा भाग्य यही।
किसी की मन की बात को कोई ,
नहीं आंखों से पढ़ पाता है ।
सब कुछ सत्य के साथ में रहकर ,
हर कटु वाणी सह लेता है।
जब दण्ड मिले उस गलती का ,
जिसे दूर से भी नही जाना था
तब झंकृत होकर हृदय से निकले,
मेरा भाग्य यही, मेरा भाग्य यही, मेरा भाग्य यही।
जब एक पथिक पथ चलते चलते,
थक जाता कोशिश करते करते ।
लक्ष्य निकट दिखता है फिर भी,
उद्देश्य को प्राप्त न होता तब भी।
आखिर भाग्य में क्या है लिखा,
क्यों मुझको सारा कष्ट दिखा ।
तब झंकृत होकर हृदय से निकले,
मेरा भाग्य यही, मेरा भाग्य यही, मेरा भाग्य यही।
जब एक छोटी नन्ही सी चिड़िया,
ले चोंच में तिनका फुर उड़ जाती।
दिनभर तिनका जोड़ – जोड़ के ,
घोंसला है तैयार वो करती ।
फिर आंधी से एक ही क्षण में ,
उसका घर पूरा नष्ट है होता ।
फिर झंकृत होकर हृदय से निकले
मेरा भाग्य इस, मेरा भाग्य यही, मेरा भाग्य यही।।
दुर्गेश भट्ट