कभी-कभी प्रेम शब्दों का नहीं, भावनाओं का खेल होता है..! जहां

कभी-कभी प्रेम शब्दों का नहीं, भावनाओं का खेल होता है..! जहां तर्क और अधिकार की नहीं, त्याग और समर्पण की जीत होती है..!!
रिश्ते वो कांच की तरह होते हैं, चमकते हुए, पर नाजुक..! ज़रा-सी अनदेखी, और बिखरने में वक्त नहीं लगता..! पर जिसे जोड़ना आ जाए, वो हर टुकड़े में अपना अक्स देख लेता है..!!
प्रेम में सही होने की जरूरत कहां? यह तो समर्पण का व्रत है, जहां ‘हम’ का जन्म होता है और ‘मैं’ कहीं गुम हो जाता है..!! कभी-कभी झुक जाना, मुस्कुरा देना, और दर्द को सीने में छिपा लेना सबसे बड़ा प्रेम बन जाता है..!
तो जब भी लगे कि खुद को गलत मानना पड़े, सोचना -क्या एक पल का अहम उन अनगिनत पलों से बड़ा है, जो तुम्हें उस रिश्ते ने दिए हैं..?
प्रेम सिर्फ जीता नहीं जाता, महसूस किया जाता है। और जब तक यह अहसास है, तब तक हर हार में भी जीत है..!!