7.2.25 :: 1212 1122 1212 112
7.2.25 :: 1212 1122 1212 112
ये दिल तमाम जगह शर्मसार बन के रहा
वही समय मुझें बस यादगार बन के रहा
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यूँ रंजो-गम हो हज़ारों भी ख्व़ाहिशें लेकिन
मै इश्क़ में सदा बस तलबग़ार बन के रहा
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जिसे नहीं पता हो रास्ता तिरी ग़ली का
मै रास्तों में फ़क़त ऐ-तबार बन के रहा
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शरीक़ था उसी ज़लसे जहाँ पे तूफां थे
किनारे मैं नदी में ख़ुश- ग़वार बन के रहा
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मुझें निकाल रहे ज़िंदगी से जाने क्यों
दिलो जा जिसके लिए ख़ाक़सार बन के रहा
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तिरे चुनाव ख़रा मै उतर नहीं पाया
मै ख़ारिज़ों का ही उम्मीदवार बन के रहा
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सुशील यादव दुर्ग (cg)
7000226712