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7 Feb 2025 · 2 min read

बसंत ऋतु

बसंत ऋतु
कुण्डलिया
1
हरियाली को देख मन गया उसी में भूल
हरे भरे हर पौध पर दमक रहे हैं फूल
दमक रहे हैं फूल दृश्य अनुपम यह दिखता
अवधू जिसको देख-देखकर कविता लिखता
आया दिवस बसंत सुमन हर डाली-डाली
वन,उपवन या खेत, दिखे सबमें हरियाली
2
खिलकर सरसों कह रही हुआ शीत का अंत
पतझड़ है बतला रही यह ऋतुराज बसंत
यह ऋतुराज बसंत चला लेकर हरियाली
गाती होकर मस्त गीत कोयल मतवाली
भौंरे भी गुंजार बाग में करते मिलकर
विविध भाँति के फूल सजे उपवन में खिलकर
3
भौंरों का मधुगान या कोयल का संगीत
ऋतु बसंत की हर छटा लेती मन को जीत
लेती मन को जीत प्रकृति की झलक निराली
वन,उपवन,या खेत हर जगह है हरियाली
मन होगा ही मुग्ध हमारे संग औरों का
किसे न भाता देख फूल पर दल भौंरों का
4
आते देख बसंत को तरु हैं भाव विभोर
नव पल्लव धारण किए पत्ते तजे कठोर
पत्ते तजे कठोर पुनः कल्लों में कलियाँ
बनें कली से फूल गंध से महके गलियाँ
ऋतु हो धन्य बसन्त सभी कहकर सुख पाते
भौंरें हैं मदमस्त देख फूलों के आते
5
भू पर गेंहू की फसल में सरसों के फूल
मिलाजुला यह दृश्य है सुन्दरता का मूल
सुन्दरता का मूल धरा पर आज वहाँ है
शहरों से कुछ दूर वाटिका खेत जहाँ है
हरा-भरा हर डाल फूल डाली के ऊपर
दयासिंन्धु ने आज स्वर्ग ही भेजा भू पर
6
तारे नभ में चमकते होते दिन का अंत
मानो वे ही भूमि पर उतरे जान बसंत
उतरे जान बसंत सुमन का वेष बनाए
गेंदा और गुलाब ,चमेली बनकर छाए
सरसों के जोफूल खेत में दिखते सारे
मानो भू पर फैल गए तारे ही तारे
7
डाली-डाली पर लगे हैं पौधों में फूल
पछुआ पवन उड़ा रहा गगन बीच में धूल
गगन बीच में धूल जहाँ भौंरे मडराते
इस मौसम में आज सभी मन में सुख पाते
आया दिवस बसंत जानकर कोयल काली
कू-कू करती दौड़ लगाती डाली-डाली
8
अभिनन्दन ऋतुराज का, जो अति सुख का मूल
कोयल गाकर कर रहीं ,कलियाँ बनकर फूल
कलियाँ बनकर फूल ,फूल सौंदर्य बढ़ाकर
जिसके ऊपर श्याम वर्ण भौंरे मडराकर
हरे वर्ण से वृक्ष,गंध फैलाकर चंदन
मिलजुल सुखद बसंत,का करें सब अभिनंदन
9
सरसों बोया खेत में ,मौसम है अनुकूल
हर सरसों के शीश पर दमक रहे हैं फूल
दमक रहे हैं फूल,फूल को चूम रहा हूँ
मैं किसान हूँ आज खुशी में झूम रहा हूँ
अवधू मन में आस जगी अबसे कइ सरसों
तक खाऊँगा तेल फलेगी इतनी सरसों

अवध किशोर ‘अवधू’
मोबाइल नंबर-9918854285
दिनांक-07-02-2025

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