2122 1122 1122 22

2122 1122 1122 22
आज तनहा हो गए तुमसे किनारा कर के
बद – जुबानी कोई गलती भी दुबारा कर के
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हम हक़ीक़त से भला तो कहाँ वाक़िफ़ होते
ग़र बताया नहीं होता जी इशारा कर के
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उफ करेगी नहीं दुनिया जिसे तुमने चाहा
हर वो तकलीफ़ उठा लेगी ग़वारा कर के
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हैसियत चाँद की समझे ,यही की गलती ना
मशवरा, आँको कहीं ख़ुद को, सितारा कर के
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ख़ुश्क़ी खाँसी मिटी होगी कहीं परहेजो से
आजमा देख लो तुम भी ये ग़रारा कर के
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अब धुँआ देने की बारी नहीं तेरी पगले
खुद की पहचान बनेगी तो शरारा कर के
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अब हमारे नहीं बस में कोई भी क़लपुर्जे
रख दिया हमने ये तक़दीर ख़टारा कर के
सुशील यादव दुर्ग (CG)