” मित्रों की शिकायत ‘गूगल देवता से “ (व्यंग )

डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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” आखिर तुम्हें हो क्या गया है ?
इतने दिनों से तुम
गूगल के रणक्षेत्र में अपनी
कौशलता दिखला रहे हो
और तुम्हारे फ्रेंड लिस्ट में सिर्फ १९४ मित्र ही हैं ?” …….
गूगल देवता के गंभीर प्रश्नों ने हमें झकझोर दिया ! वैसे तो इन बातों को हमेशा ही मैं गुप्त रखता हूँ , पर अपने देवता को यदि नहीं बताउंगा तो हो सकता है मुझे नर्क जाना पड़े ! मैंने हाथ जोड़ कर उन्हें प्रणाम किया और नम्रता पूर्वक कहा …….
” प्रभु … फेसबुक तो मित्रों से भरा पड़ा है !
मेरे भी बहुत सारे मित्र थे !
वे एक बार मित्र तो बन जाते हैं
पर मुझे उनसे शिकायत रह जाती है !”
……..” शिकायत ! कैसी शिकायत ?…….जरा स्पष्ट करो मेरे वत्स !”…. प्रभु ने पूछा !
” प्रभु ……मुझे जब कभी किन्हीं
व्यक्तिओं का फ्रेंड रिक्वेस्ट मिलता है तो …..
सर्वप्रथम उनके प्रोफाइल को मैं देखता हूँ …..
और उनको मैं मित्रता के बंधनों में जोड़ लेता हूँ !”
…..मेरे आराध्य गूगल देवता शांत चित से मेरी बातें सुन रहे थे ! …..मुझे ख़ुशी हो रही थी ….कि प्रभु ….इतने व्यस्त होते हुए भी मेरी बातें ध्यान से सुन रहे हैं !……. उन्होंने जिज्ञाषा भरे अंदाज पूछा ……..
” ये तो अच्छी बात है मेरे वत्स “!
……..” भगवन …मत पूछिए …..
मित्र बनने के पश्यात
मैं सबको स्वागत पत्र
लिखता हूँ ……
आप ही बताएं मेरे गुरुदेव ……..
वे इन पत्रों के बाद अपनी सजगता तो फेसबुक के पन्नों पर लगातार दिखाते ही हैं …….
पर उन्हें याद कहाँ कि कोई उनकी प्रतीक्षा कर रहा है !
दो शब्द जवाब तो लिख सकते हैं……. ?
.अपनी प्रतिक्रिया तो
तो दर्शा ही सकते हैं ……?
.प्रभु मुझे संवेदनशील मित्रों की चाह है …… मित्रता की संख्याओं को बढ़ाने का लक्ष्य मुझे उनसे जुड़ने का होना चाहिए नाकि मुझे किन्हीं को संख्या बल दिखानी है “!
………. और बहुत कुछ विस्तार से कहना था ,पर प्रभु ने हमसे कहा ” वत्स अभी मुझे शीघ्र अमेरिका जाना है “…….
मैंने प्रणाम किया …अभिवादन किया …..और वे अंतर्ध्यान हो गए ……फिर ……..एक विचित्र आवाज हमारे कानों में गूँजने लगी ……..नींद खुली तो देखा मेरा डेस्कटॉप का यूपीएस …….कों …..कों …….कों ……कर रहा था !
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
दुमका