वर्ण
बात करें स्वाध्याय की,
गीता भी दिन-रात |
उचित रहे कब कथ्य यह,
वर्ण बताते जात ||1
ज्ञान निहित स्वाध्याय की,
हरिमुख वर्णित बात |
उचित कहाँ यह कथ्य है,
वर्ण बताये जात ||2
चार भाग हैं कर्म के,
वर्ण रहे अभिधान |
वर्ण नहीं है जात भी,
क्यो रखते अज्ञान ||3
चिंतन करते हैं सभी,
मनन जगत मौजूद |
लुप्त स्वाश-प्रश्वास जो,
शुद्र बने मरदूद ||4
खोना पाना है सदा,
प्रकृति जनित गुणधर्म |
विचलित भी होते नहीं,
ब्राह्मण जाने मर्म ||5
संचय करते ज्ञान का,
रखते चाह नगण्य |
कार्य पठन पाठन रहे,
ब्राह्मण के लावण्य ||6
रखते चाह नगण्य जो ,
संचय करते ज्ञान |
कार्य पठन पाठन रहे,
ब्राह्मण रखते ध्यान||7
रहे सदा तल्लीन जो ,
राह चले रख धीर |
कभी कर्मपथ पर नहीं,
शूर बहाते नीर ||8
गहे वीरता भी करे,
रक्षित धर्म सुकर्म |
क्षत्रिय रहते जो सदा,
समझें इसका मर्म ||9
स्वयं सृष्टि है वैश्य भी ,
जाने जीवन मर्म |
करें भरण-पोषण यहाँ,
वैश्य उचित यह कर्म ||10
लोग समझते मर्म कब,
चाह रखे बस भाष्य |
जीवन रक्षण धर्म है,
क्यों पीते हो कश्य ||11
कलुष हृदय रखकर करे,
कश्य कल्पना नित्य |
जो समझे इस मर्म को,
वैश्य यही है कृत्य ||12
संजय निराला
दैनिक मजदूर
गोरखपुर उत्तर प्रदेश