“लिखना मत छोड़ो तुम”

डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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गुनधुन में
आखिर क्यों रहूँ
क्यों सोचूँ
भला क्या लिखूँ
कभी कविता
मुझे खींचती है
कभी मेरी
उँगलियों को पकड़
कहती है
“लिख डालो कहानियाँ”
खिस्से ,संस्मरण !
लोगों की भावनाओं को लिखो
उनकी व्यथाओं को
उजागर करो !
जहाँ कोई तंत्र ना पहुँचता है
वहाँ जाकर अपनी
किरणें बिखेरो
कोई पढ़े या ना पढ़े
आज नज़रअंदाज़ उन्हें करने दो
कल कोई ना कोई
इन पन्नों को पलटेगा
दुख: दर्द समझेगा !
अंदाज़ कुछ भी हो
लिखना मत छोड़ो तुम !!
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
05.02.2025