प्रेम दया वैसे रहे,

प्रेम दया वैसे रहे,
जैसे मद बाजार।
पाते जो पागल हुए,
देते जो लाचार।।
सीता ने जब की दया,
छुटा राम का साथ।
जीवन भर पीड़ा सही,
मरती पिट-पिट माथ।।
धर्म सदा उपयोगिता,
कर्म सदा विचार।
समझ लिया जो भी जहाँ,
वैतरणी हो पार।।
__संजय निराला