ऋतुराज बसंत

आयो ऋतुराज
आयो ऋतुराज मंद शीतल बयार बहे
खेतों में सोहें पीत सरसों के फूल
बागन में झूल रही मंजरी , कुसुम खिले
विहॅसे जस चांदनी बेला के फूल।।
शीत में नहाए दुबकी थीं डलियां जो
थिरक रहे पात बन नाचें दुकूल
वसुधा के आंगन में मधुर झंकार बजे
नृत्य करें कलियां बीते दिन भूल।।
खेतों में अलसी के नीले फूल चहंक रहे
बिखर रहे बूंदों से पातों के धूल
चमक रही चांदनी, झिलमिल किरन देख
निशा अंधियारी छिपे मिट रहे शूल।।
वासंती रंग में नहायी आज धरती है
सज धज दमक रहे टेसू के फूल
बाजे मृदंग ढोल मिलके मजीरे से
गीतों के रागों में सब कुछ भूल।।
**मोहन पाण्डेय ‘भ्रमर ‘
हाटा कुशीनगर उत्तर प्रदेश