हम सब कहीं न कहीं से गुज़र रहे हैं—कभी किसी रेलवे स्टेशन से,

हम सब कहीं न कहीं से गुज़र रहे हैं—कभी किसी रेलवे स्टेशन से, कभी किसी किताब के पन्नों से, कभी किसी कैफे के कोने से, तो कभी किसी फूलों की दुकान से। हर जगह हमें कुछ न कुछ सिखाती है—कुछ सफ़र में, कुछ शब्दों में, कुछ महक में, और कुछ तन्हाइयों में।
शायद हम सब किसी न किसी मोड़ पर रुक जाते हैं, सोचते हैं, महसूस करते हैं, और फिर आगे बढ़ जाते हैं। मगर जो लम्हे हम जी चुके होते हैं, वे कहीं न कहीं हमारे भीतर रह जाते हैं—कभी किसी याद की तरह, कभी किसी ख़ुशबू की तरह, और कभी किसी भूले-बिसरे ख़त की तरह।