अगर मैं / अरुण देव (पूरी कविता…)

अगर मैं / अरुण देव (पूरी कविता…)
अगर मैं गिरा तो प्रेम में गिरा
झुका तो सामने प्रेम खड़ा था
अगर मैं अनैतिक हुआ तो प्रेम में हुआ
समझौते हुए होंगे प्रेम बचाने के लिए
चालाकियाँ प्रेम पाने के लिए
अगर मैं नालायक था तो
इसलिए कि प्रेम के लायक बन सकूँ
जब लोग असरदारों के सामने गिरे, झुके, घिघिया रहे थे
और अपनी तरफ़दारियाँ चुन रहे थे
मैं प्रेम में था
मुझे इसके लिए आज भी लज्जित किया जाता है
शुक्र है मैं बदनाम दुनियादारी के लिए नहीं हुआ