कुण्डलियां
कैसी मजबूरी हुई, भूले सब संस्कार।
पैसे के पीछे लगे, परदेशी सा प्यार।।
परदेशी सा प्यार, भाव पश्चिम से जागे।
मात पिता को भूल , होड़ मे सबसे आगे।।
वृद्धाश्रम में छोड़, बुद्धि शैतान के जैसी।
रिश्तो पर कर घात, हाय दुनिया यह कैसी।।
©®✍️ अरुणा डोगरा शर्मा
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