दोहा पंचक. . . . वर्तमान :
दोहा पंचक. . . . वर्तमान :
बदल गए हैं आजकल, इस जीवन के अर्थ ।
मौज़ मनाओ आज बस, बाकी सब है व्यर्थ।।
धर्म आचरण तो हुए , बीते कल की बात।
अब तो केवल अर्थ की, चाहें सब बरसात ।।
बेघर माँ को कर दिया, हुआ न तनिक मलाल।
वर्तमान की सभ्यता , सचमुच बड़ी कमाल ।।
वर्तमान सन्दर्भ में, क्षीण हुए संस्कार ।
आपस में अब प्रेम का, टूट गया आधार ।।
कितने उन्नत हो गए, वर्तमान परिधान ।
अंग प्रदर्शन ही बना, नव युग की पहचान ।।
सुशील सरना/3-2-25