यादों के दरीचे से
यादों के दरीचे से
कुछ पुष्प चुरा लाया हूँ
बीते हुए लम्हों से
कुछ यादें चुरा लाया हूँ l
बचपन की यादों की महक
माँ का स्नेह चुरा लाया हूँ
भाई – बहन का रूठना
और मनाना साथ लाया हूँ l
उस पगली को क्या समझाता
मुहब्बत का सबब
चीर अपना दिल
उसे दिखा के आया हूँ l
खिले हुए रिश्तों की महक
स्नेह का समंदर चुरा के लाया हूँ
माँ की लोरियों का रस
पिता का आशीर्वाद अपार लाया हूँ ll
अनिल कुमार गुप्ता अंजुम