साथ अधूरा
आज की रात फ़िर मुझे नींद नहीं आएगी
मुझे मेरे भविष्य की चिंता फ़िर जगाएगी
रात भारी है, छाई गहरी ख़ामोशी है
गला भरा है, रुदन आँखें रुलाएगी
अब हर पल कह रहा है कि
तुम्हारी यादें मुझे हर दम सताएगी
जो इस बारी दूर हुए हम
डर लगता है कि यह दूरियां बढ़ जाएगी
जो बिछड़े यदि इस बार तो
बनके यही यादें हमें मिलवाएगी
क्यों जाना है इतना दूर हमें
जब राहें नहीं फ़िर टकराएगी
कुछ पलों का साथ भी न रह सके तुम
बेवफाई तुम्हारी मेरी चिता हर रोज़ जलाएगी
_ सोनम पुनीत दुबे “सौम्या”