गंगा स्नान

दुखों की गठरी
सर पर उठाए
लोग चल रहे है
पैरों में भक्ति
का जामा चढ़ाए
लोग चल रहे है
कांधे पर मुक्ति
का गमछा लटकाए
लोग चल रहे है
डर की डोरी से
थामे है, कुनबा
थके हारे कदमों
से लोग चल रहे है
पहुंचे निकट जो
हर हर गंगे
पापों का कचरा
लोग धुल रहे है।