वर्णिक छन्दों का वाचिक प्रयोग

वर्णिक छन्दों का वाचिक प्रयोग
कुछ छन्दों में वर्णों की संख्या निश्चित होती है, इन्हें वर्णिक छन्द कहते हैं। इनमें से कुछ वर्णिक छन्दों में वर्णों का मात्राभार भी सुनिश्चित होता है, इन्हें वर्णवृत्त कहते हैं। वर्ण वृत्तों की एक निश्चित वर्णिक मापनी भी होती है जिसमें गुरु के स्थान पर दो लघु प्रयोग करने की छूट नहीं होती है, इसलिए इन्हें मापनीयुक्त वर्णिक छन्द भी कह सकते हैं। मापनीयुक्त वर्णिक छन्दों अर्थात वर्णवृत्तों में यदि गुरु या गा के स्थान पर दो लघु या लल प्रयोग करने की छूट ले ली जाये तो छन्द को रचना बहुत सरल हो जाता है और वह नये रूप में वर्णिक छन्द का वाचिक रूप होता है। इस रूप में इन छन्दों का प्रयोग गीत, गीतिका, ग़ज़ल, मुक्तक, भजन, कीर्तन और फिल्मी गानों में बहुलता से होता रहा है और यह प्रयोग बहुत ही लोकप्रिय सिद्ध हुआ है। मापनी युक्त वर्णिक छन्दों या वर्णवृत्तों को वाचिक रूप में प्रयोग करना शास्त्र सम्मत है भी या नहीं? इस प्रश्न पर विचार करें तो हम पाते हैं कि हमारे पारंपरिक छन्द शास्त्र में स्वयं इस प्रकार के प्रयोग किये गये हैं। अनेक मात्रिक छन्द जैसे गीतिका, हरिगीतिका, शक्ति, रजनी आदि वस्तुतः मापनीयुक्त वर्णिक छन्दों या वर्णवृत्तों क्रमशः सीता, मुनिशेखर, भुजंगी, राधा आदि के वाचिक रूप ही है। इससे स्पष्ट है कि ऐसा प्रयोग करने की अनुमति हमारा छन्द शास्त्र देता है। तथापि किसी वर्णिक छन्द का वाचिक रूप में प्रयोग करते समय यह परख लेना आवश्यक है कि इस परिवर्तन से छन्द का मूल स्वरूप (लय, यति, गति) विकृत न होने पाये। हम केवल उन्हीं वर्णिक छन्दों को वाचित रूप में प्रयोग कर सकते हैं जिनकी मूल प्रकृति (लय, यति, गति) ऐसा करने से अक्षुण्ण बनी रहती है। आइए अब कुछ उदाहरणों के माध्यम से ऐसे प्रयोगों पर दृष्टिपात करें।
(1) सीता एक ‘मापनीयुक्त वर्णिक छन्द’ है, जिसमें वर्णों की संख्या निश्चित होती है अर्थात किसी गुरु या गा या 2 के स्थान पर दो लघु या लल या 11 प्रयोग करने की छूट नहीं होती है। ऐसे छन्द को ‘वर्ण वृत्त’ भी कहा जाता है। इसका विधान निम्नप्रकार है –
वर्णिक मापनी – गालगागा गालगागा गालगागा गालगा
अथवा- 2122 2122 2122 212
पारंपरिक सूत्र – राजभा ताराज मातारा यमाता राजभा (अर्थात र त म य र)
जबकि य, म, त, र, ज, भ, न, स, ल और ग क्रमशः यगण (यमाता या लगागा), मगण (मातारा या गागागा), तगण (ताराज या गागाल), रगण (राजभा या गालगा), जगण (जभान या लगाल), भगण (भानस या गालल), नगण (नसल या ललल), सगण (सलगा या ललगा), लघु (ल) और गुरु (गा) को व्यक्त करते हैं।
मूल सीता छन्द का उदाहरण –
शीत ने कैसा उबाया, क्या बतायें साथियों!
माह दो कैसे बिताया, क्या बतायें साथियों!
रक्त में गर्मी नहीं, गर्मी न देखी नोट में,
सूर्य भी देखा छुपा-सा कोहरे की ओट में।
– स्वरचित
अब यदि इस छन्द में गुरु के स्थान पर दो लघु के प्रयोग की छूट ली जाये तो हम इसे वाचिक सीता (या संक्षेप में वासीता) छन्द कहेंगे जो मात्रिक छन्द गीतिका के नाम से हमारे छन्द शस्त्र में पहले से उपस्थित है। इसका विधान निम्नप्रकार है-
गीतिका (26 मात्रा, 14,12 या 12,14 पर यति उत्तम, मापनीयुक्त)
वाचिक मापनी – गालगागा गालगागा गालगागा गालगा
अथवा- 2122 2122 2122 212
विशेष- पारंपरिक छन्द शास्त्र में ऐसी मापनी न लिख कर 3,10,17,24 वीं मात्रा लघु होने का संकेत दिया गया है जिसका सरल-सुबोध रूप उपर्युक्त मापनी है। इसी प्रकार अन्य उदाहरणों में समझना चाहिए।
गीतिका छन्द का उदाहरण –
आँसुओं, सहचर बनो तो, कहकहाते ही रहो।
नीड़ से निकलो कभी तो, चहचहाते ही रहो।
वेदना पहचान में होगी, मिली तुमको कहीं,
अस्मिता अपनी कभी यों, ही लुटा देना नहीं।
-स्वरचित
उर्दू ग़ज़लों में इस छन्द की मापनी को इसप्रकार लिखा जाता है-
उर्दू मापनी- फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
और इसप्रकार छन्द वाचिक सीता अथवा मात्रिक गीतिका पर आधारित ग़ज़लों का बहुलता से सृजन किया जाता है।
वाचिक सीता या गीतिका छन्द पर रचित दुष्यंत कुमार की एक ग़ज़ल का मुखड़ा दृष्टव्य है।
गीतिका छन्द पर आधारित एक शेर –
एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है,
आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है ।
– दुष्यंत कुमार
इसी वाचिक सीता या गीतिका पर अनेक फिल्मी गानों का भी सृजन किया गया है।
गीतिका छन्द पर आधारित फिल्मी गीत –
1 चुपके’-चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
2 आपकी नज़रों ने’ समझा प्यार के काबिल मुझे
इसी क्रम में हम कुछ और उदाहरण संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं जिनमें वणिक छन्दों को वाचिक रूप में प्रयोग किया गया है-
(2) मुनिशेखर एक मापनीयुक्त वर्णिक छन्द या वर्णवृत्त है जिसका विधान निम्न प्रकार है-
वर्णिक मापनी – ललगालगा ललगालगा ललगालगा ललगालगा
अथवा- 11212 11212 11212 11212
पारंपरिक सूत्र- सलगा जभान जभान भानस राजभा सलगा लगा (अर्थात स ज ज भ र स ल ग)
मूल मुनिशेखर छन्द का उदाहरण –
कर दो कृपा वर दो सुधा कमलासिनी शुभ शारदे।
तम है घिरा पथ दो दिखा तमनाशिनी शुभ शारदे।
सुविचार दो रसधार दो पयवाहिनी शुभ शारदे!
उर में बसो नित अम्बिका वर दायिनी शुभ शारदे!
– स्वरचित
अब यदि इस छन्द में गुरु के स्थान पर दो लघु के प्रयोग की छूट ली जाये तो हम इसे वाचिक मुनिशेखर छन्द कहेंगे जो मात्रिक छन्द हरिगीतिका के नाम से हमारे छन्द शस्त्र में पहले से उपस्थित है। इसका विधान निम्नप्रकार है-
हरिगीतिका छन्द (28 मात्रा, 16,12 पर यति उत्तम, मापनीयुक्त)
वाचिक मापनी- गागालगा गागालगा गागालगा गागालगा
अथवा- 2212 2212 2212 2212
हरिगीतिका छन्द का उदाहरण –
उस ज्ञान का हम क्या करें जो, दंभ में अनुदार हो।
उस रूप का हम क्या करें जिस, में न मृदुता-प्यार हो।
जो हैं अकारण रूठते, हम, उन गृहों से क्या डरें।
जो मूलतः व्यापार हो उस, धर्म का हम क्या करें।
(स्वरचित)
उर्दू मापनी – मुस्तफ़्इलुन मुस्तफ़्इलुन मुस्तफ़्इलुन मुस्तफ़्इलुन
उर्दू बहर- बह्र-ए-रजज़ मुसम्मन सालिम
हरिगीतिका छन्द पर आधारित एक मुखड़ा-
जिस रोज़ से पछवा चली आँधी खड़ी है गाँव में
उखड़े कलश, है कँपकँपी इन मंदिरों के पाँव में।
डॉ. कुँवर बेचैन
हरिगीतिका छन्द पर आधारित फिल्मी गीत –
1 हम बेवफा हरगिज न थे पर हम वफ़ा कर ना सके।
2 इक रास्ता है ज़िन्दगी जो थम गये तो कुछ नहीं।
(3) भुजंगी एक मापनीयुक्त वर्णिक छन्द या वर्णवृत्त है जिसका विधान निम्न प्रकार है-
वर्णिक मापनी – लगागा लगागा लगागा लगा
पारंपरिक सूत्र – यमाता यमाता यमाता लगा (अर्थात य य य ल ग)
मूल भुजंगी छन्द का उदाहरण –
चले जा चले जा अकेले यहाँ,
चलेंगे हजारों, चले तू जहाँl
दया-प्रेम की ज्योति ऐसी जला,
कि टूटे स्वयं द्वेष की अर्गला।
– स्वरचित
अब यदि इस छन्द में गुरु के स्थान पर दो लघु के प्रयोग की छूट ली जाये तो हम इसे वाचिक भुजंगी छन्द कहेंगे जो मात्रिक छन्द शक्ति के नाम से हमारे छन्द शस्त्र में पहले से उपस्थित है। इसका विधान निम्नप्रकार है-
शक्ति छन्द (18 मात्रा, मापनीयुक्त)
वाचिक मापनी- 122 122 122 12
वाचिक लगावली- लगागा लगागा लगागा लगा
शक्ति छन्द का उदाहरण-
चलाचल चलाचल अकेले निडर,
चलेंगे हजारों, चलेगा जिधरl
दया-प्रेम की ज्योति उर में जला,
टलेगी स्वयं पंथ की हर बलाl
– स्वरचित
उर्दू मापनी- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
उर्दू बहर- बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
शक्ति छन्द पर आधारित एक शेर-
इबादत की किश्तें चुकाते रहो
किराये पे है रूह की रौशनी
– अज्ञात
शक्ति छन्द पर आधारित फिल्मी गीत –
1 तुम्हारी नज़र क्यों ख़फा हो गयी,
ख़ता बख़्स दो ग़र ख़ता हो गयी।
2 दिखाई दिये यूँ कि बेखुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले
3 बहुत प्यार करते है’ तुमको सनम
कसम चाहे’ ले लो खुदा की कसम
(4) राधा एक मापनीयुक्त वर्णिक छन्द या वर्णवृत्त है जिसका विधान निम्न प्रकार है-
वर्णिक मापनी – गालगागा गालगागा गालगागा गा
अथवा- 2122 2122 2122 2
पारंपरिक सूत्र – राजभा ताराज मातारा यमाता गा (अर्थात र त म य ग)
मूल राधा छन्द का उदाहरण –
है अँधेरा छा रहा दो रश्मियाँ माते!
ज्ञान की धात्री जला दो बत्तियाँ माते!
क्षारदे माँ दो मिटा अज्ञानता सारी!
जीव की संजीवनी-सी प्रीति दो न्यारी!
– स्वरचित
अब यदि इस छन्द में गुरु के स्थान पर दो लघु के प्रयोग की छूट ली जाये तो हम इसे वाचिक राधा छन्द कहेंगे जो मात्रिक छन्द रजनी के नाम से हमारे छन्द शस्त्र में पहले से उपस्थित है। इसका विधान निम्नप्रकार है-
रजनी छन्द (23 मात्रा, मापनीयुक्त)
वाचिक मापनी- गालगागा गालगागा गालगागा गा
अथवा- 2122 2122 2122 2
उर्दू मापनी- फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन फ़ैलुन
रजनी छन्द का उदाहरण –
कौन ऊपर बैठकर रस-कुम्भ छलकाये।
छोड़ कर दो-चार छींटे प्यास उमगाये।
कौन विह्वलता धरा की देख मुस्काता,
छेड़ता है राग, गाता और इठलाता।
– स्वरचित
रजनी छन्द पर आधारित गीतिका का मुखड़ा और एक युग्म-
मात्र जीने के लिए नीरव जिया ही क्यों?
पी रहा है रश्मियाँ अपनी दिया ही क्यों?
ज़िंदगी जीकर चला हूँ मौत जीने अब,
पागलों से पढ़ रहे तुम मरसिया ही क्यों?
– स्वरचित
रजनी छन्द पर आधारित फिल्मी गीत-
बस यही अपराध में हर बार करता हूँ,
आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ।
ध्यातव्य : छंदशास्त्र की इसी परम्परा का अनुकरण करते हुए हम बहुत-से अन्य वर्णिक छन्दों का वाचिक प्रयोग कर सकते हैं और इस प्रकार बनने वाले नये मात्रिक छन्दों के नाम, उपलब्ध न होने पर, ‘वाचिक’ या संक्षेप में ‘वा’ उपसर्ग के साथ निर्धारित किये जा सकते हैं जैसे चामर से वाचामर, स्रग्विणी से वास्रग्विणी, भुजंगप्रयात से वाभुजंगप्रयात, बाला से वाबाला आदि। इस सन्दर्भ में अग्रलिखित उदाहरण दृष्टव्य हैं।
(5) चामर एक मापनीयुक्त वर्णिक छन्द या वर्णवृत्त है जिसका विधान निम्न प्रकार है-
वर्णिक मापनी – गालगाल गालगाल गालगाल गालगा
अथवा- 2121 2121 2121 212
पारंपरिक सूत्र – राजभा जभान राजभा जभान राजभा (अर्थात र ज र ज र)
मूल चामर छन्द का उदाहरण-
इन्द्रियाँ हुईं अशक्त कामना नहीं गयी,
शक्तिहीन किन्तु काम-भावना नहीं गयी।
सत्य है कि काम-चाम बीच डोलते रहे,
राम नाम सत्य झूठ-मूठ बोलते रहे।
-स्वरचित
अब यदि इस छन्द में गुरु या गा के स्थान पर, उच्चारण के अनुरूप, दो लघु या लल के प्रयोग की छूट ली जाये तो हम इसे वाचिक चामर (वाचामर) छन्द कहेंगे, इसकी उपर्युक्त मापनी ‘वाचिक मापनी’ हो जायेगी और छन्द की प्रकृति मात्रिक छन्द जैसी हो जायेगी।
वाचिक चामर छन्द का उदाहरण –
लोग कुछ कहें परन्तु लक्ष्य को न भूल तू,
व्यर्थ के विवाद को सुधीर दे न तूल तू।
कंटकों भरी डगर, सचेत चल सँभल-सँभल,
हैं भविष्य स्वर्णमय पुकारता सुपंथ चल।
– स्वरचित
उर्दू मापनी- फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
वाचिक चामर छन्द पर आधारित युग्म-
छन्द को सहेजती, विधा रसाल गीतिका।
कवि निकुंज में खिली, करे कमाल गीतिका।
(स्वरचित)
वाचिक चामर छन्द पर आधारित फिल्मी गीत
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
– गोपालदास नीरज
(6) स्रग्विणी एक मापनीयुक्त वर्णिक छन्द या वर्णवृत्त है जिसका विधान निम्न प्रकार है-
वर्णिक मापनी – गालगा गालगा गालगा गालगा
अथवा- 212 212 212 212
पारंपरिक सूत्र- राजभा राजभा राजभा राजभा (अर्थात र र र र)
मूल वर्णिक छन्द का उदाहरण –
दाढ़ियाँ हैं निरी, हैं निरी चोटियाँ।
धर्म की विश्व में हैं निरी कोटियाँ।
नाम क्या दें भला व्यक्ति के धर्म को,
जो जिये स्वार्थ में त्याग सत्कर्म को।
– स्वरचित
अब यदि इस छन्द में गुरु या गा के स्थान पर, उच्चारण के अनुरूप, दो लघु या लल के प्रयोग की छूट ली जाये तो हम इसे वाचिक स्रग्विणी (वास्रग्विणी) छन्द कहेंगे, इसकी उपर्युक्त मापनी ‘वाचिक मापनी’ हो जायेगी और छन्द की प्रकृति मात्रिक छन्द जैसी हो जायेगी।
वाचिक स्रग्विणी पर आधारित मुक्तक –
रोटियाँ चाहिए कुछ घरों के लिए।
रोज़ियाँ चाहिए कुछ करों के लिए।
काम हैं और भी ज़िंदगी में बहुत –
मत बहाओ रुधिर पत्थरों के लिए।
– स्वरचित
वाचिक स्रग्विणी पर आधारित युग्म-
गुदगुदाये पवन फागुनी धूप में।
खिलखिलाये बदन फागुनी धूप में।
फिल्मी गीत –
1 खुश रहे तू सदा ये दुआ है मे’री
2 कर चले हम फ़िदा जानो’-तन साथियों
3 तुम अगर साथ देने का’ वादा करो
(7) भुजंगप्रयात एक मापनीयुक्त वर्णिक छन्द या वर्णवृत्त है जिसका विधान निम्न प्रकार है-
वर्णिक मापनी – लगागा लगागा लगागा लगागा
अथवा- 122 122 122 122
पारंपरिक सूत्र – यमाता यमाता यमाता यमाता (अर्थात य य य य)
मूल भुजंगप्रयात का उदाहरण-
अकेला-अकेला कहाँ जा रहा हूँ,
कहो तो बता दूँ कहाँ जा रहा हूँ।
लगा मृत्यु से है भयाक्रान्त मेला,
चला मृत्यु को भेंटने मैं अकेला।
– स्वरचित
अब यदि इस छन्द में गुरु या गा के स्थान पर, उच्चारण के अनुरूप, दो लघु या लल के प्रयोग की छूट ली जाये तो हम इसे वाचिक भुजंगप्रयात (वाभुजंगप्रयात) छन्द कहेंगे, इसकी उपर्युक्त मापनी ‘वाचिक मापनी’ हो जायेगी और छन्द की प्रकृति मात्रिक छन्द जैसी हो जायेगी।
वाचिक भुजंगप्रयात छन्द पर आधारित मुक्तक –
विलग हो अकेला कहाँ जा रहा हूँ,
कहो तो बता दूँ कहाँ/जहाँ जा रहा हूँ।
लगा मृत्यु से है भयाक्रान्त मेला,
चला मृत्यु से अस्तु मिलने अकेला।
– स्वरचित
वाचिक भुजंगप्रयात पर आधारित शेर –
ये’ दरवाज़ा’ खोलें तो’ खुलता नहीं है,
इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ।
– दुष्यन्त कुमार
वाचिक भुजंगप्रयात छन्द पर आधारित फिल्मी गीत-
1 तुम्हीं मेरे’ मंदिर तुम्हीं मेरी’ पूजा …
2 वो’ जब याद आये बहुत याद आये।
3 जो’ उनकी तमन्ना है’ बर्बाद हो जा।
4 हमें और जीने की’ चाहत न होती।
5 ऐ’ फूलों की’ रानी बहारों की’ मलिका।
6 मुहब्बत की’ झूठी कहानी पे’ रोये।
7 तुम्हें प्यार करते हैं करते रहेंगे।
8 अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो।
9 ते’रे प्यार का आसरा चाहता हूँ।
10 बने चाहे दुश्मन जमाना हमारा।
11 अजी रूठकर अब कहाँ जाइयेगा।
12 अगर साज छेड़ा तराने बनेंगे।
(8 ) बाला एक मापनीयुक्त वर्णिक छन्द या वर्णवृत्त है जिसका विधान निम्न प्रकार है-
वर्णिक मापनी – गालगा गालगा गालगा गा
अथवा- 212 212 212 2
पारंपरिक सूत्र – राजभा राजभा राजभा गा (अर्थात र र र ग)
वर्णिक बाला का उदाहरण-
देखिए आज क्या हो रहा है?
प्रेम-विश्वास भी खो रहा है।
झूठ का है हुआ बोलबाला,
सत्य जाने कहाँ सो रहा है।
– स्वरचित
अब यदि इस छन्द में गुरु गा के स्थान पर, उच्चारण के अनुरूप, दो लघु या लल के प्रयोग की छूट ली जाये तो हम इसे वाचिक बाला (वाबाला) छन्द कहेंगे, इसकी उपर्युक्त मापनी ‘वाचिक मापनी’ हो जायेगी और छन्द की प्रकृति मात्रिक छन्द जैसी हो जायेगी।
वाचिक बाला छन्द का उदाहरण –
रोटियाँ चाहिए कुछ घरों को।
रोज़ियाँ चाहिए कुछ करों को।
काम हैं और भी ज़िंदगी में।
क्या रखा इश्क़ आवारगी में।
– स्वरचित
वाचिक बाला छन्द पर आधारित फिल्मी गीत-
1 रात भर का है’ मे’हमां अँधेरा
2 आज सोचा तो आँसू भर आये
3 जा रहा है वफ़ा का जनाज़ा
इसी प्रकार बहुत से अन्य वर्णिक छन्दों को वाचित रूप में मर्यादिक प्रयोग किया जा सकता है जो पूर्णतः छन्दशास्त्र के अनुकूल है। इस प्रयोग से अनेक नये छन्दों की उद्भावना होगी और उन छन्दों से बहुत-सी ऐसी लयों को निरूपित करना संभव होगा जिनको अभी तक किसी छन्द से निरूपित नहीं किया जा सका है। इस प्रकार छन्दों का मर्यादित विकास छन्द-शास्त्र को विस्तृत आयाम देने के साथ जीवन्तता प्रदान करेगा।
(मेरी कृति ‘छन्द विज्ञान’-चतुर्थ संस्करण से)
– आचार्य ओम नीरव
8299034545