कोठा….
कोठा….
अपनी हवस के लिए हमें जरिया बनाया जाता है ।
फिर होठों से मोहब्बत का दरिया बहाया जाता है ।
होते थे कोठे कहीं-कहीं कभी बीते हुए ज़माने में-
अब तो हर नज़र में इक कोठा सजाया जाता है ।
सुशील सरना
कोठा….
अपनी हवस के लिए हमें जरिया बनाया जाता है ।
फिर होठों से मोहब्बत का दरिया बहाया जाता है ।
होते थे कोठे कहीं-कहीं कभी बीते हुए ज़माने में-
अब तो हर नज़र में इक कोठा सजाया जाता है ।
सुशील सरना