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1 Feb 2025 · 1 min read

नज़र

मिरी नज़र को धोखा हो रहा है ।
यकीं ख़ुद से ख़ुदाया खो रहा है ।।

जाने कौन…. शिद्दत की गर्मी में ।
मुझको यादों से…. भिगो रहा है ।।

जिनको समझा था… बंजर मैंने ।
ख़्वाब उन्हीं आँखों में बो रहा है ।।

मुझे अश्क भी नहीं लगते खारे ।
दर्द कोई चाशनी में डूबो रहा है ।।

न करना ज़मीर का सौदा वासिफ़ ।
दिल यही दुहाई देकर रो रहा है ।।

© डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर
© काज़ी की क़लम

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