अपनी जवानी को कामयाबी के तराजू पर मत तोलो,

अपनी जवानी को कामयाबी के तराजू पर मत तोलो,
“ता-उम्र की है संजीदगी की बातें,
कुछ तो मोहब्बत की गुफ्तगू कर लो।”
कब ये पल हाथ से फिसल जाए,
कब ये वक़्त गुज़र जाए, कुछ पता नहीं।
नादानियां बेमन ही सही, थोड़ी और कर लो।
बचपन की उंगली को अपने हाथ में थामे बढ़ लो।
कब ये वक़्त गुज़र जाए, कुछ पता नहीं।
एक प्याला चाय और कुछ यारों के साथ, थोड़ी यादें संजोए अंकही रहो से यारी करलो ।
जिंदगी के जेब में कुछ सिक्के शरारतों के भी भर लो।
कब ये वक़्त गुज़र जाए, कुछ पता नहीं।
ये कोई नसीहत नहीं, इसे ज़रूरत समझ लो।
कभी तो जिंदगी को जिंदगी से पहले परख लो।
कब ये वक़्त गुज़र जाए, कुछ पता नहीं।