sp70 पैमाना गिर के/ हवा पे खुशबू
sp70 पेमाना गिर के/ हवा पे खुशबू
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पैमाना गिर के हाथों से जब छूट रहा हो
लगता है ऐसा जैसे मुकद्दर रूठ रहा हो
कैसे कहें हम बेबसी की अपनी कहानी
कुछ टूट रहा हो जैसे कुछ छूट रहा हो
आईना हमसे पूछ रहा आप कौन हैं
अब तक वो बोलता सदा ही झूट रहा हो
कैसे भरोसा कीजिए भ्रम टूट गया जब
रहबर ही अपने कारवां को लूट रहा हो
इस दौर की कुछ इस तरह बदली है रवायत
अपमान ख़ुद अपने गले में घूँट रहा हो
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हवा पे खुशबू फलक पे तारे और बादलों पर घटाएं लिखना
अगर वफा को हो आजमाना तो पत्थरों पे दुआएं लिखना
ये शाम तन्हा ये रात तारी छलकते अश्को की बेकरारी
जो हो सके तुम बस अपने खत में मेरे लिए भी वफाएं लिखना
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डॉक्टर// इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
यह भी गायब वह भी गायब