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31 Jan 2025 · 1 min read

इंसानों को इंसानों की, भीड़ कुचलती चली गयी

इंसानों को इंसानों की, भीड़ कुचलती चली गयी
पुण्य कमाना दूर, पाप की गठरी और भर ली
कैसे अपने प्राण बचाने, औरों के तन रौंद दिए
निर्दयता की सीमा त्यागी, अपनी संस्कृति भूल गए

माना हमने भीड़ बहुत थी, सिस्टम की त्रुटियां भी थीं
लेकिन कुछ अधीर लोगों की, शायद उद्यंडता भी थी
हिंदू संस्कृति पर प्रहार के, विधर्मी अवसर खोज रहे
ऐसे दुष्प्रचार से अपनी, संस्कृति न बदनाम करें

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