इसको मैं अपनी असफलता नहीं मानता हूँ

हाँ, इसको मैं अपनी असफलता,
नहीं मानता हूँ ,
और ना ही इसको अपनी मंजिले- ख्वाब,
मैं मानता हूँ।
मेरे होठों और तन की,
जो अधूरी थी इच्छा और प्यास,
वह सहर्ष खुद तुमने पूरी कर दी है पहलकर,
इसलिए मुजरिम मैं नहीं बन सका।
क्यों डरूँ मैं किसी सजा से,
कि तू कहे यह गुनाह मैंने किया है,
हाँ, मेरे पास पुख्ता सबूत है यह बताने को,
कि यह खता, यह पाप तुमने किया है।
अगर खोल दूंगा मैं अपनी जुबां को,
बदनामी और बर्बादी तेरी ही होगी,
मुश्किल हो तुम्हें किसी को मुँह दिखाना,
इसलिए हार मेरी नहीं, तुम्हारी हुई है।
और फिर से झुकेगा तेरा सिर मेरे सामने,
मुझको मनाने और खुशी पाने के लिए,
अगर छोड़ दी मैंने अपनी जिद तो,
लेकिन इससे मैं शर्मिंदा और निराश नहीं हूँ।
हाँ, इसको मैं अपनी असफलता,
नहीं मानता हूँ।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)