शीर्षक – कलयुग

शीर्षक – कलयुग
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कलयुग अब चल रहा है।
द्वापर त्रेता सतयुग पढ़े हैं।
आज कलयुग में हम जीते हैं।
उपदेश सभी बीते युगों के देते हैं।
सच न कोई युग का जानता है।
बस जो पढ़े वो पढ़ाते रहते हैं।
बस सत्संग और आश्रम होते हैं।
गीता महाभारत रामायण ग्रंथ हैं।
आज कलयुग की अपनी गति हैं।
कलयुग में बीतें युग की कहते हैं।
हां सच न कोई जाने कहता है।
इतिहास हम सबको सुनाते हैं।
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नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र