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30 Jan 2025 · 6 min read

उन्मुक्त बाजारवाद, उपयोगितावाद और पूंजीवाद के मध्य पिसता हुआ जनमानस

जो व्यक्ति बदलना नहीं चाहते हैं, उन पर मेहनत करना बेकार है! ऐसे व्यक्तियों पर मेहनत करना अपनी स्वयं की ऊर्जा को नष्ट करना है! लेकिन कई झक्की किस्म के व्यक्ति सबको बदलने की जिद्द पर डटे रहते हैं! इसके साथ साथ जो व्यक्ति आपसे दूर भागते हैं, उनके पीछे भागना भी स्वयं का समय और स्वयं के मानसिक संतुलन को खराब करना है! सर्वप्रथम अपने स्वयं में बदलाव हो जाये, यही काफी है!इसके बाद जो व्यक्ति आपसे कुछ सृजनात्मक बदलाव की मदद मांगते हैं या आपके सानिध्य में रहना उन्हें रुचिकर लगता है तो ऐसे व्यक्तियों की मदद अवश्य करें!
क्योंकि आजकल जितना मनमानापन, उच्छृंखलता और अनैतिकता मौजूद है, शायद इतना कभी नहीं रहा है! अधिकांश देशों में कहने को तो लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित है लेकिन हालात देखने से ऐसा लगता नहीं है!यदि दार्शनिक दृष्टिकोण से अवलोकन किया जाये तो लगता है कि आज लोकतंत्र,जनतंत्र,पूंजीतंत्र,साम्यतंत्र,समाजतंत्र,राजतंत्र और जोरतंत्र में से कोई भी तंत्र मौजूद नहीं है! कहने के लिये कुछ,करने के लिये कुछ,दिखाने के लिये कुछ तथा हकीकत में कुछ अन्य ही व्यवस्था लगती है! अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिये पूरे तंत्र की नियमावली का उल्लंघन करने को शासक, प्रशासक और शासित तैयार रहते हैं! नेताओं,धर्मगुरुओं और धनपतियों द्वारा घोषित सिद्धांतों, नियमावली और नैतिकता का आज सर्वाधिक अपमान और उपेक्षा देखने को मिल रहे हैं!विदेशों की तो बात रहने दीजिये, लेकिन भारत में तो यह धींगामस्ती सरेआम हो रही है! इसके साथ यह भी भयावह है कि आजकल बोलने की आज़ादी मात्र कुछ वर्गों या संगठनों या व्यक्तियों को ही उपलब्ध है!नीली क्रांति की आड़ में सनातन भारतीय जीवन मूल्यों, कर्मकांड, ग्रंथों, महापुरुषों और दर्शनशास्त्र को गालियाँ देने की आज़ादी मिली हुई है! एससी एसटी एक्ट की आड में एक वर्ग विशेष द्वारा ‘विधिक आतंकवाद’ चलाया जा रहा है!नेता और राजनीतिक दल वोट के चक्कर में इसको हवा दे रहे हैं! श्रीराम,श्रीकृष्ण,शंकराचार्य, पुष्यमित्र,महर्षि दयानंद सरस्वती, गांधीजी जैसे महापुरुषों तथा वेदों,उपनिषदों,मनुस्मृति, षड् दर्शनशास्त्र, श्रीमद्भगवद्गीता,रामचरितमानस आदि पर अनैतिक और अभद्र टिप्पणियां करना कानूनी अधिकार बना हुआ है जबकि संविधान,अंबेडकर, ज्योतिबा फूले, हेडगेवार, गोलवलकर आदि पर टिप्पणी करने पर विधिक पाबंदी लगी हुई है!सेना तक को अग्निवीर जैसी योजनाओं से कमजोर किया जा रहा है!इससे भारत में भविष्य में खालिस्तान,नक्सलवाद, अलगाववाद को बढावा मिलना निश्चित है!कम आयु के हथियार प्रशिक्षित बेरोज़गार युवा बेरोजगारी से उत्पन्न हताशा, तनाव, चिंता में अलगाववादी जीवन शैली की तरफ जाकर भारत को कमजोर करेंगे!
हमारा संविधान भी इस पर मौन है! राजनीतिक लाभ के लिये संवैधानिक धाराओं का दुरूपयोग करना हमारे नेताओं वकीलों और न्यायधीशों को भलि तरह से आता है!सनातन से ही भारत में जो सत्य कथन के लिये वैचारिक आजादी मौजूद रही थी, कुछ दशकों से उस पर आपातकाल सा लगा हुआ है! असत्य कथन के लिये पूरी आजादी और विधिक संरक्षण मौजूद है!दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र, ज्ञानशास्त्र,वाकोवाक्य, आन्वीक्षिकी की जन्मभूमि भारत में वैचारिक आजादी पर इस तरह से तालाबंदी दुखदायी है!
अनैतिक कहे जाने वाले झूठ,कपट,धोखाधड़ी, छल,विश्वासघात, आपाधापी,चापलूसी, भ्रष्टाचरण,रिश्वतखोरी आदि को आजकल सफलता का अचूक मंत्र मान लिया गया है! जबकि नैतिक कहे जाने वाले करुणा,प्रेम, भाईचारा,सह- अस्तित्व,आदर,सत्कार,
श्रद्धा,आस्था, समर्पण, मेहनत, निष्ठा तथा पुरुषार्थ को दब्बूपन और कायरता का प्रतीक मान लिया गया है!विकास और समृद्धि का भौतिकवादी तराजू बहुत भारी है लेकिन कुछ लोगों तक सीमित होकर रह गया है!आत्मिक तराजू बहुत हल्का हो गया है!अध्यात्म की आड में भी भौतिक समृद्धि का घटिया खेल चल रहा है!अपनी गलत धारणा को सही और नैतिक मानकर दूसरों पर थोपने को जन्म सिद्ध अधिकार कहा जा रहा है! जबकि दूसरों की सही, सार्थक और नैतिक बातों को गलत और समयबाह्य कहकर मखौल उडाया जाता है! इस अधकचरे,अधूरे, उथले, संकीर्ण और एकतरफा विकास और समृद्धि ने इस धरती को विनाश के कगार पर खड़ा कर दिया है!तथाकथित समृद्ध,शिक्षित, विकसित और बुद्धिजीवी कहे जाने वाले वर्ग की यह अज्ञानता विनाशकारी है!
तथाकथित धर्मप्रेमी,योगी, संन्यासी,स्वामी कहे जाने वाले महान लोगों ने सब कुछ को व्यापार बना दिया है! उपरोक्त लोगों में भी चटनी,चूर्ण, टाफी, आटा, दाल, बिस्कुट,चड्डी, बनियान आदि निर्माण में अंध-प्रतियोगिता चल रही है! सनातन भारतीय दर्शनशास्त्र के जीवन मूल्यों की कोई बात नहीं हो रही है!सभी सबसे आगे थाना जाने की दौड लगा रहे हैं! सबसे निरापद और पुरानी चिकित्सा आयुर्वेद के संबंध में आज से 5000 वर्षों पहले महर्षि चरक ने जो कहा है, उसका आज कोई मूल्य नहीं रह गया है! यहाँ तक कि शिक्षा,योग,अध्यात्म, कथा, प्रवचन और चिकित्सा तक को धंधा बना दिया गया है!महर्षि चरक के अनुसार-
‘कृते ये तू वृत्त्यर्थ चिकित्सापण्यविक्रम्!
ते हित्वा कांचनं राशि पांशुराशिमुपासते!!’
अर्थात् जो चिकित्सक अपनी आजीविका चलाने के लिये इस पुण्यतम आयुर्वेदिक चिकित्सा को सौदे की भांति बेचा करते हैं, वो मानो सोने के बदले धूल बटोर रहे हैं!
अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति एलोपैथी से टक्कर लेने के फलस्वरूप उल्टे सीधे वायदे करके आयुर्वेद को बदनाम किया जा रहा है! जो आयुर्वेद एक जीवन पद्धति है, उसे चमत्कारी चिकित्सा तक सीमित करके धूर्त लोग अमीर बन रहे हैं!
संयुक्त राष्ट्र संघ का निर्माण दुनिया में शांति , सहयोग और समता के लिये किया गया था! लेकिन कुछ धनाड्य देशों के दादागिरी के कारण विश्व की अधिकांश मेहनतकश आबादी प्रताड़ित है! अमरीका, रुस , चीन जैसे देश अपनी मनमानी करके सरकारों को गिराने और अपने हितार्थ सरदारों को स्थापित करने का दुस्साहस कर रहे हैं!आतंकवाद चरम पर है! दुनिया में आतंकवादी संगठनों को आर्थिक मदद धनाड्य देशों से ही मिलती रही है! अरब देशों में सदैव से अशांति और मारामारी मौजूद रही है! अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान जैसे देशों में आतंकियों की सरकारें स्थापित हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ कुछ नहीं कर पा रहा है!
सही बात तो यह है कि आसुरी सोच की सैमेटिक सभ्यता सारे विश्व पर हावी है!जीवन के हरेक क्षेत्र में इसी का बोलबाला है!उपयोगितावादी फिलासफी मजहब, समाज, शिक्षा, व्यवसाय, न्याय व्यवस्था, चिकित्सा पर हावी है!सनातन ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के जीवन दर्शन की हरेक क्षेत्र में उपेक्षा और उपहास हो रहा है!मानव देह में मौजूद मूलाधार चक्र के तमस का प्रभाव सर्वत्र मौजूद है! आज के मानव ने मूलाधार चक्र को सर्वाधिक जाग्रत किया हुआ है! इसी के प्रभाव वश लोगों के जीवन में तमस, जडता, बेहोशी, स्वार्थ, द्वेष, ईर्ष्या, अंध-प्रतियोगिता हावी हैं!आज के मानव ने अनाहत चक्र/ हृदय चक्र को सबसे कम जाग्रत किया है! इसी वजह से लोगों के जीवन में प्रेम, करुणा, संवेदनशीलता,सहयोग, भाईचारा, मेलमिलाप आदि गुण गायब से हो गये हैं!मूलाधार चक्र में मौजूद तमस की प्रबलता के कारण स्वाधिष्ठान चक्र पर मौजूद कामुकता की पूर्ति के लिये सारे जुगाड़ किये जा रहे हैं! एक तरह से मानव प्राणी में मौजूद आज्ञा चक्र के संकल्प, विशुद्धि चक्र की वाणी तथा मणिपुर चक्र की प्राणशक्ति ने मिलकर स्वाधिष्ठान चक्र की कामुकता को अंधा कर दिया है! लोग जैसे जैसे करके काम वासना को भोगने के लिये पागल हो गये हैं! सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, टीवी चैनल्स और हमारी शिक्षा व्यवस्था ने इसमें आग में घी डालने का काम किया है! कोई कुछ कहे तो पिछड़ा और रुढिवादी कहकर मखौल उडाया जाता है!
और तो और हमारे त्यौहार, उत्सव, पर्व, मेलों, सत्संगों, जागरणों और योग शिविरों में भी उच्छृंखल उन्मुक्त भौतिकवादी विचारधारा का जोर है! इसके निवारण के लिये केवलमात्र सनातन भारतीय संस्कृति, धर्म, अध्यात्म,योग, दर्शनशास्त्र और जीवन- मूल्यों से मार्गदर्शन, सहयोग और मदद मिलेगी! लेकिन पिछले काफी समय से स्वयं भारत में सनातन के हरेक पहलू को दरकिनार करके इसे सैमेटिक सभ्यता से प्रेरित होकर भ्रष्ट रुप में प्रस्तुत किया जा रहा है! सनातन धर्म, अध्यात्म, योग और आयुर्वेद को एक व्यापार बनाकर रख छोडा है!जनमानस विभ्रमित है कि उपरोक्त विद्याओं का सत्य स्वरूप क्या है? इस विभ्रम को उत्पन्न करने में तथाकथित बडे लोगों का हाथ है!यह विभ्रम बना रहे, तथाकथित बडे लोगों का इसी में लाभ है!क्योंकि ये तथाकथित बडे लोग चाहते ही नहीं कि जनमानस निरोगी, स्वस्थ, शांतचित्त एवं भौतिक रूप से समृद्ध हो!
………
आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र -विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र -136119

Language: Hindi
37 Views
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