एड़ियाँ ऊँची करूँ हिम्मत नहीं है

फिर लगेगी आग नूतन साल होगा ।
बस्तियों का हाल फिर से लाल होगा ।
फिर किसी बंधुआ की होगी घर नीलामी
फिर वही कम्बल ओढ़ाया भाल होगा ।
पूँजीपतियों का दिया कैसे चुकायें
एक धोती एक कुर्ता एक थप्पड़ गाल होगा ।
का रे फूलवा बोल कर इज्जत दिए हैं
लग रहा चुनाव फिर इस साल होगा ।
कर रहे हैं पैंतराबाज़ी हमारी बस्तियों में
फिर किसी का हाल मालामाल होगा ।
एड़ियाँ ऊँची करूँ हिम्मत नहीं है
सिसकियों में फिर हमारा लाल होगा ।
@ धीरेन्द्र पांचाल