दोहा पंचक. . . . प्यास
दोहा पंचक. . . . प्यास
अच्छा नहीं गरीब का, करना यूँ उपहास ।
वैभव का मधुमास तो, कालचक्र का दास ।।
रंग बदलती जिन्दगी, मौसम के अनुरूप ।
कभी सुहाती छाँव तो, कभी सताती धूप । ।
तृष्णा सब की एक सी, सब की प्यासी प्यास ।
अन्तस में रहती सदा, कुछ पाने की आस ।।
मरीचिका सी जिन्दगी, जहाँ प्यास ही प्यास ।
इसके जीवन तीर पर, तृप्ति मात्र आभास ।।
मधुर मास को लीलता, पतझड़ का संत्रास ।
देखी बढ़ते ही सदा , तृप्ति तीर पर प्यास ।।
सुशील सरना / 29-1-25