शिक्षा की सार्थकता
अज्ञानता को दूर करके
ज्ञान की ज्योति जलाती है
शिक्षा ही मानव जीवन को
जीने योग्य बनाती है
पर क्या वास्तव में किताबी शिक्षा
सार्थक बन पाती है
जब जब कोई बहु बेटी
खून से नहाती है
क्या वो शिक्षा सार्थक कहलाती है
जब जब मानव अत्याचारों की
व्यथा सुनाई जाती है
जब जब कोई निर्ममता से
लाश बिछाई जाती है
क्या शिक्षा सार्थक बन पाती है
जब जब भाई का भाई से
पुत्र का पिता और माई से
सगे संबंधों में बढ़ती खाई से
अहंकार की प्यास बुझाई जाति है
क्या शिक्षा सार्थक बन पाती है
जब मानव मात्र से प्रेम न हो
वसीदैभ कुटुंबकम का भाव न हो
जब जीवन मूल्यों का आभास न हो
क्या शिक्षा सार्थक बन पाती है
शिक्षा में जब मूल्य समाहित हो
जीवन में नैतिकता प्रभावी हो
संस्कार विशुद्ध आचरण करुणा
दया प्रेम ममता व क्षमा
शिक्षा की आधार शिला हो जब
तब तब शिक्षा संपूर्ण बने
मानव जीवन के प्राण बने
मूल्य शिक्षा से ही
मानव जीवन सार्थक हो चले