अपमान का बदला
दोस्तों,
एक ग़ज़ल बेटी की शान में आपकी मुहब्बत के हवाले,,,,
ग़ज़ल
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जड़ के तमाचा मारा बेटी ने गाल पर,
बदला छोड़ा न उसने माँ के लाल पर।
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माँ के अपमान का बदला स्वयं लिया,
पहन वतन की वर्दी अपनी खाल पर।
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वो साहसी थी फर्ज निभाना कैसे भूले,
बदजुबाँ को छोड़ा बुरे उसके हाल पर।
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सिर पर हाथ क्या रखा बदमिजाज के,
शायद फक्र हुआ हुजूर को मिसाल पर।
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बन रही थी राजघराने की जैसे रानी है,
हर शख्स फिदा था लहराती चाल पर।
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रहबर क्या बनी सरकार ‘जैदि’ जालिम,
बदजुबाँ हर बार उतर आई बवाल पर।
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शायर :-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”