ग़ज़ल
ग़ज़ल
सुनों हे माघ की ठंढक मुझे मत आजमाओ तुम
समूचा खेत कोड़ूँगा मुझे छूकर दिखाओ तुम
डिगूँगा मैं नहीं प्रहलाद सा ही सत्य से हरगिज
हमारे बाप हो तो क्या हुआ मुझको डिगाओ तुम
अरे मैं बाघ हूँ यदि सो रहा हूँ तो सरक लेना
अगर यमलोक जाना है चलो मुझको जगाओ तुम
बहुत है गर्व हे मिर्ची तुझे अपनी तिताई पर
तुझे चटनी बना दूँगा हमारे पास आओ तुम
भरत हूँ,साहसी हूँ, आज तेरे दाँत गिनना है
बहुत दम शेर है तुझमें चलो मुझको भगाओ तुम
लपटते पूँछ में कपड़े बहुत खुश हो रहे अवधू
सकल लंका जला दूँगा अनल इसमें लगाओ तुम
अवध किशोर ‘अवधू’
मोबाइल नंबर9918854285
दिनांक 27-01-2025