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28 Jan 2025 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल
सुनों हे माघ की ठंढक मुझे मत आजमाओ तुम
समूचा खेत कोड़ूँगा मुझे छूकर दिखाओ तुम

डिगूँगा मैं नहीं प्रहलाद सा ही सत्य से हरगिज
हमारे बाप हो तो क्या हुआ मुझको डिगाओ तुम

अरे मैं बाघ हूँ यदि सो रहा हूँ तो सरक लेना
अगर यमलोक जाना है चलो मुझको जगाओ तुम

बहुत है गर्व हे मिर्ची तुझे अपनी तिताई पर
तुझे चटनी बना दूँगा हमारे पास आओ तुम

भरत हूँ,साहसी हूँ, आज तेरे दाँत गिनना है
बहुत दम शेर है तुझमें चलो मुझको भगाओ तुम

लपटते पूँछ में कपड़े बहुत खुश हो रहे अवधू
सकल लंका जला दूँगा अनल इसमें लगाओ तुम

अवध किशोर ‘अवधू’
मोबाइल नंबर9918854285
दिनांक 27-01-2025

Language: Hindi
47 Views
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