सांझ की सिन्दूरी कल्पनाएं और तेरी आहटों का दबे पाँव आना,

सांझ की सिन्दूरी कल्पनाएं और तेरी आहटों का दबे पाँव आना,
खिड़कियों पर बैठी पुरवाईओं का, ख्वाहिशों को यूँ सहलाना।
खामोशियों की सिमटी दरख़्त पर, बातों का यूँ चहचहाना,
जो कभी जाहिर ना हो पायी, उन एहसासों को छू जाना।
एक ओस के ठहरे कतरे को, दरिया का ख्वाब दिखलाना,
लकीरों की साजिशों को पारकर, साये से तेरे टकराना।
मुस्कुराहटों की सौदेबाजी में, सितारों का आसमां पर उतर आना,
अधूरे चाँद की निगरानी में फिर, मुंडेरों पर रात को ठहराना।
कहीं दूर किसी शायर का, दर्द में लिपटा हुआ एक तराना,
यादों की महकती कश्तियाँ और उसके इश्क़ का वो गुजरा ज़माना।
एक चिराग का रात की तन्हाइयों से, बेफिक्र होकर लाड लगाना,
नामुमकिन से सवालों का यूँ, ज़हन की जमीं पर बिछ जाना।
वक़्त का रेत बनकर, उंगलियों की दरारों से फिसल जाना,
सुबह की वो अनकही दस्तक और, तमन्नाओं का बिखरा नजराना।
यूँ हीं तो भरता जा रहा है, तेरे मेरे इश्क़ का पैमाना,
ना बिछड़ने की है सूरत कोई, और ना मिलने का है ठिकाना।