■【 शाम डरती है 】■
असहनीय वेदना
असनहीय वियोग
रोज़ाना प्रतिदिन
ह्रदय के झरने से बहती है,
शाम होने से शाम डरती है।
ख़ालीपन का बाज़ार सजे,
तन मन सब काँप उठें
छिन्न भिन्न ह्रदयों की
रोज़ाना प्रतिदिन
तन्हाई उभरती है
शाम होने से शाम डरती है।
न मिलन न वार्तालाप
गालों पर केवल अश्रुओं की छाप
माहौल में समस्त वातावरण मे
एक बिछड़ी हुई संगिनी
एक बदली हुई स्त्री
कि यादों की
रोज़ना प्रतिदिन
परछाइयाँ मेरे ज़ेहन में उतरती है,
शाम होने से शाम डरती है।
पीड़ाओं की चीख़
पश्चतापों कि अनकही पुकार,
इंतज़ार में बैठी हुई नेत्रों कि
असहनीय अवर्णनीय
अनेकों संवेदनाओं
अनेकों भावनाओं
कि एक अंजानी सी लहर
रोज़ाना प्रतिदिन
मन को छूती हुई गुज़रती है
शाम होने से शाम डरती है।