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30 Jan 2025 · 1 min read

मतदार

तेरी हर शिकायत भी मुझसे ही है,
तेरी हर अदावत भी मुझसे ही है।
तेरी हर जरूरत भी मुझसे ही है,
तेरी हर आरजू की आशंसा है मुझसे।
मेरी आरजू प्यार के दो लफ़्ज़ थे,
वो भी रहे न अब मेरे अपने।
जो सपने संजोए थे शिद्दत से मैंने,
अब वो दामन में किसी और के हैं।
शिकवा करूं तो तौहीन होगी यार की,
अब तो वो पैसे की मदतार में हैं।
मुकद्दर की बात हैं हर लम्हे की सौगात।
सुकून में है वो में मेरी आरज़ू का घोंटकर।
सपनों का जहाँ लूटकर बरबाद कर दिया।
फिर भी वो तूफान के तलबगार ही है।
क्या खोया क्या पाया ये सोचने चाह नहीं।
उनका दीदार नागवार है हम बचे ही नहीं।

श्याम सांवरा….

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